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शुक्रवार, 29 मई 2009

रैगिंग नही यह काल है

ऊँची शिक्षा और एक अच्छी नौकरी, बस यही एक सपना होता है हर माँ -बाप का।अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वो रात-दिन एक करके पैसा इकठ्ठा करते हैं और अपने बच्चों को भेज देते हैं दूर बड़े-बड़े कालेजों में शिक्षा के लिए। लेकिन उन्हें कहाँ पता होता है की वहां रैगिंग रुपी काल उनका इन्तजार कर रहा है।
सच ही तो है आज रैगिंग काल का ही रूप ले चुका है।रैगिंग रुपी काल आज हमारे देश के सैकडों होनहार बच्चों को निगल रहा है। जो बच्चे दिन-रात मेहनत कर कालेजों में एक उम्मीद के साथ दाखिला लेते हैं उन्हें वहां रैगिंग का सामना करना पड़ता है और उनके सपने वही दम तोड़ देते हैं।यूँ तो रैगिंग कानूनी अपराध बन चुका है और इसे रोकने के लिए कई क़ानून भी बन गए हैं।यही नही कालेजों के अधिकारी भी इस पर पूर्णतया रोक लगाने के दावे करते नजर आते हैं लेकिन आज भी कितने ही छात्र रैगिंग का शिकार हो रहे हैं।
यदि हमें रैगिंग को रो़कना है तो इसका उपाय केवल क़ानून बनाना नही वरन छात्र-छात्राओं का सहयोग भी जरूरी है।सीनियर विद्यार्थियों को भी सोचना चाहिए की जो उन्होंने सहा है वो आने वाले विद्यार्थियों को न सहना पड़े। तभी रैगिंग पर रो़क लग सकेगी ।वैसे भी विद्यार्थी देश का भविष्य हैं। उनके हाथों में पुस्तक और कलम तथा आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने झिलमिलाने चाहिए ,न की क़ानून की जंजीरें.

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