हम सबकी ये शान है
हिंदी मेरे देश की भाषा
हिंदी से ही हिन्दुस्तान है
हिंदी वर्णों के मोती मिल
शब्दों का हार बनाते हैं
नित नया सृजन करते हैं
अद्भुत साहित्य रचाते हैं
यहीं हमें मिलते सूर कबीर
और यहीं मिलते रसखान हैं
हिंदी मेरे देश की भाषा
हिंदी से ही हिन्दुस्तान है
साहित्य की अविरल सरिता
बस
यूँ ही बहती रहती है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हिंदी हरदिल में बसती है
ढाई आखर प्रेम का इसका
जोड़े दे सारा जहान रे
हिंदी मेरे देश की भाषा
हिंदी से ही हिन्दुस्तान है
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी `दिशा’
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