है प्रश्न बहुत गंभीर
कर देता है मुझे अधीर
देता है दिन रात दस्तक
पूछता है-क्या मैं स्वतंत्र हूँ ?
कक्षा में पढ़ाए गए थे जब गणतंत्र के विचार
तब शिक्षक ने बताए थे हमारे मौलिक अधिकार
इस गणतंत्र में सभी स्वतंत्र हैं कुछ भी कहने के लिए
सहमति या विरोध का मत देने के लिए
लेकिन आज जब भी कोई आवाज़ उठाता है
सबसे पहले उसका मौलिक अधिकार छीना जाता है
फिर क्यों न उठे यह प्रश्न- क्या मैं स्वतंत्र हूँ ?
गणतंत्र है मेरे लिए फिर भी मैं क्यूँ परतंत्र हूँ।
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