सोमवार, 23 मार्च 2009

माँ ही तो है

सिमटा है जिसके आँचल में सारा संसार
दिल में है जिसके सिर्फ़ प्यार
और कौन हो सकती है वो
माँ ही तो है तडपती है जो
ख़ुद दुख सहती है
फिर भी हमें जिंदगी देती है
कितनी प्यारी कितनी भोली
प्यार और ममत्व से भर दे सबकी झोली
त्याग की ये मूर्ति
अमित है इसकी छवि
तुलना है बेकार
अनगिनत हैं माँ के उपकार

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