शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

आ रहा घरवास

 

दिनांक - 27-03-2020


बाहर-बाहर इतना दौड़े हम, रहा नहीं आभास

आज मिला है मौका सोचें, क्या होता घरवास

लूडो, ताश, कैरमबोर्ड बिचारे, धूल खाते कोने में

इनके भी दिन बदले, आता मजा जीने में

कथा, चुटकले, किस्सों के भी, हुए वारे न्यारे

पुस्तकें पुरानी ले अंगड़ाई, अलमारी से अब झाँके

दादा-दादी संग बैठे, दिन कितने बीत गए

नाना-नानी से फोन पर, सब चर्चे छूट गए 

आई है रौनक फिर से, घर के गलियारों में

इंद्रधनुषी रंग बिखरे हैं, कमरों की दीवारों पे

खोया था हमने क्या जाना, हुआ आज अहसास

सच कहूँ तो रास आ रहा, मुझे मेरा घरवास


स्वरचित

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

बंगलूरू (कर्नाटक)


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