रविवार, 26 अगस्त 2012

कालू भालू

एक था कालू भालू

था बड़ा ही चालू

शैतानी करता था

सबसे वो लड़ता था

तब जानवरों ने ठानी

उसे याद दिलाएँ नानी

ढूँढ रहे थे मौका

कब मिलके मारें चौका

जल्दी ही वो दिन आया

शिकारी ने जाल बिछाया

कालू फँस गया उसमें

कुछ नहीं था उसके वश में

उसने आवाज़ लगाई

कोई जान बचाओ भाई

चिंकू चूहा बोला

तुमने कब किसको छोड़ा

क्यों जान बचाऊँ तुम्हारी

नहीं तुमसे कोई यारी

मैं तो चला अपने रस्ते

तुम मरना हँसते-हँसते

कालू ने पकड़े कान

मेरे भाई बचाओ जान

मुझको है पछतावा

अब मान भी जाओ राजा

चिंकू थोड़ा मुस्काया

कालू के पास में आया

जाल को उसने कुतरा

टल गया सारा खतरा

कालू ने मन में ठानी

अब करूँ नहीं मनमानी

खाता हूँ कसम में अब से

मिलकर रहूँगा सबसे

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

दोस्ती का रिश्ता

खून से नहीं है जुड़ा

लेकिन खून से भी बड़ा

दोस्ती का रिश्ता ऐसा

जो है सबसे खरा

वक्त आने पर होती है

पहचान अपनों की

दोस्तों से ही तो है

उड़ान सपनों की

आज़ादी

आओ मनाएँ अपनी आज़ादी का जश्न

लेकिन पहले पूछो खुद से यह प्रश्न

क्या हम आज़ाद हैं?

अगर हैं , तो किससे हैं?

अगर नहीं, तो क्यूँ नहीं हैं?

तभी होगी सच की समझ

नज़र आएगा अग्निपथ

जान पाएँगे कि दिल्ली अभी दूर है

आज भी आज़ादी बहुत मज़बूर है

पहले अंग्रेजों के हाथ बँधी थी

आज भ्रष्ट तंत्र के पास दबी है

तब भी टुकड़ों में बँटी थी

आज भी टुकड़ों में बँटी है

परिवर्तन का बोझ

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

समाज हुआ है भ्रष्ट

हाय ज़माना आया कैसा

परिवर्तन के बोझ तले हम सब दबे हैं ऐसे

सभ्यता संस्कार जैसे शब्द छूटे हैं बहुत पीछे

आज तो मॉर्डनिटी का बोलाबाला है

जो कहे सच उसका का मुँह काला है

हाय राम यह बदलाव है कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

चोर उचक्कों को जनता वोट देती है

साँप निकल जाए तब लकीर पीटती है

वादों का झुनझुना नेता बजाते हैं

अपने इशारों पर जनता को नचाते हैं

बीती बातों पर अब पछतावा कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

औरत की अस्मत घर में ही लूट लेते हैं

इसकी तोहमत भी उसी के सर मड़ते हैं

सरेआम लड़कियों को रुसवा किया जाता है

गर ना में हो जवाब, तेज़ाब छिड़का जाता है

बोलो कब तक चलता रहेगा ऐसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

अमीरों ने तन ढकना छोड़ दिया है

गरीबों को कपड़ा ही कब मिला है

बुजुर्ग दूध की कीमत से घबराते हैं

बच्चे बीयर पीकर झूम जाते हैं

तौबा-तौबा यह दिन दिखाया कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

इन आँखों में अब नहीं है हिम्मत

कुछ और देखने की

कांधे भी झुक गये हैं इस

परिवर्तन के बोझ तले ही

है प्रभु तुम ही करो कुछ चमत्कार

आकर उठाओ इस परिवर्तन का भार