शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

परिवर्तन का बोझ

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

समाज हुआ है भ्रष्ट

हाय ज़माना आया कैसा

परिवर्तन के बोझ तले हम सब दबे हैं ऐसे

सभ्यता संस्कार जैसे शब्द छूटे हैं बहुत पीछे

आज तो मॉर्डनिटी का बोलाबाला है

जो कहे सच उसका का मुँह काला है

हाय राम यह बदलाव है कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

चोर उचक्कों को जनता वोट देती है

साँप निकल जाए तब लकीर पीटती है

वादों का झुनझुना नेता बजाते हैं

अपने इशारों पर जनता को नचाते हैं

बीती बातों पर अब पछतावा कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

औरत की अस्मत घर में ही लूट लेते हैं

इसकी तोहमत भी उसी के सर मड़ते हैं

सरेआम लड़कियों को रुसवा किया जाता है

गर ना में हो जवाब, तेज़ाब छिड़का जाता है

बोलो कब तक चलता रहेगा ऐसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

अमीरों ने तन ढकना छोड़ दिया है

गरीबों को कपड़ा ही कब मिला है

बुजुर्ग दूध की कीमत से घबराते हैं

बच्चे बीयर पीकर झूम जाते हैं

तौबा-तौबा यह दिन दिखाया कैसा

बदल गया है सब कुछ

न रहा कुछ पहले जैसा

इन आँखों में अब नहीं है हिम्मत

कुछ और देखने की

कांधे भी झुक गये हैं इस

परिवर्तन के बोझ तले ही

है प्रभु तुम ही करो कुछ चमत्कार

आकर उठाओ इस परिवर्तन का भार

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