शनिवार, 20 अगस्त 2011

करो आवाज़ बुलंद

जब तलक आवाज बुलंद न की जाएगी
तब तलक कहाँ कानों में जूँ रेंग पाएगी
इसलिए उठो और ऐसी हुंकार भरो
इससे ही सत्ता हिल पायेगी

जल उठी हैं चिंगारियाँ



जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना



जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है वो पावत है
यह बात कोई झूठी नहीं
एकदम सच्ची कहावत है



इतना खो चुके हैं कि अब
खोने को कुछ बाकी नहीं
इतना रो चुके हैं कि अब
आँखों में कोई आँसू ही नहीं

यह लौ लगी है मुश्किल से
इस लौ को अब जलाके रखना

जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना



क्या सोचा था क्या पाया हमने
आजादी का मोल भुलाया हमने
भ्रष्‍टाचार के रावण को
खुद ही तो खून पिलाया हमने


बहुत हो चुका अब और नहीं
हम खुदगर्ज़ थे कमजोर नहीं
जो जाग उठे हैं तंद्रा से
तो इंकलाब की भोर हुई

अब डटे रहो, न थक जाना
सबका होंसला बनाके रखना



जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना

बुधवार, 17 अगस्त 2011

देशभक्‍ति का मर्म

आज की चर्चा का, मुख्य विषय है
क्या ’देशभक्‍ति’ की, किसी को ख़बर है
कुछ बच्चे कहते हैं, शायद ये एलियन हैं
छ्ब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त, इनके मैन दिन हैं

मैने कहा, बच्चों, "क्या तुम इनका अर्थ समझते हो ?
क्यों बन गए ये दोनों एलियन? इसका मर्म कह सकते हो?"
बच्चे बोले, "आंटी ! क्या ओल्ड लोगों की बातें करती हो?
स्पाइडर मैन, सुपरमैन के बारे में, क्यों नहीं पूछती हो?"
मैंने कहा, अरे ! "ये तो टी.वी. के कलाकार हैं"
तब बच्चे बोले ,"देशभक्‍ति कौन से सुपरस्टार हैं"
हमें तो ऐसे लोग ही ध्यान में रहते हैं
जो अक्सर लाइम लाइट में रहते हैं
अभी इनको,(क्या नाम बोला) हाँ-हाँ,
देशभक्‍ति को, कहाँ से याद करेगा
आजकल इनका ज़िक्र, कहीं नहीं मिलेगा
अब आपको पता है, तो खुद ही बता दीजिए
और इस कन्फ्यूजन को रफ़ा-दफ़ा कीजिए

मुझे लगा, यह अच्छा मौका है, सोई भावनाएँ जगाने का
इन बच्चों को, देशभक्‍ति से, रुबरू कराने का
मैने कहा, बच्चों! "देशभक्‍ति एक शब्द अथवा नाम नहीं है
ये वो भावनाएँ हैं जो आजकल आम नहीं है"
फिर भी मैं, कोशिश करती हूँ, तुम्हें समझाने की
सोई भावनाओं को, फिर से जगाने की
सुनो," अंग्रेजी’ में जो मतलब ’पैट्रीओज़्म’ का होता है
उसी को हिन्दीभाषी ’देशभक्‍ति’ समझता है
कभी ’आजाद’ और भगतसिंह ने, इनको जाना था
सुभाष चंद्र बोस भी, इनका दीवाना था

देशभक्‍ति के भाव ने उनमें इतनी शक्‍ति भर दी
इन सब ने मिलकर अंग्रेजों की छुट्टी कर दी
सारे देशवासियों के दिल में जब देशभक्‍ति समाई थी
तभी तो देश में अंग्रेजों की शामत आई थी
छोड़कर भारत की ज़मीं उन्हें जाना पड़ा था
देशभक्‍ति की ताकत से ही उनका सिर झुका था

समझे बच्चों ! पूरा देश हमारा घर तथा परिवार है
यही भावना देशभक्‍ति का आधार है
गर इतनी सी बात तुम समझ जाओगे
खुद को देशभक्‍ति से ओत-प्रोत पाओगे

रविवार, 14 अगस्त 2011

विचारणीय तथ्य

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से
गीता में कहा,
सुन पार्थ! तुझको दूँ मैं
एक सत्य बता
यह शरीर तो जन्म से ही नश्वर है
आत्मा ही है जो यहाँ शाश्‍वत है
नित नए रूप (शरीर) यह धारण करती है
कोटि अस्त्रों-शस्त्रों से भी यह नहीं मरती है
न सुखा सकी इसको हवा
और पानी भी न सका भिगा
आग तो इससे तौबा करती है
यह आग से भी न जलती है
गीता में कहा गया सच
आज भी अटल है
कलयुग में भी आत्माओं का
अदल-बदल है
लाचारी-भुखमरी की आत्माएँ
गरीबों-भिखमंगों के शरीरों में समाती हैं
रिश्वत-भ्रष्टाचार की आत्माएँ
नेताओं में डेरा जमाती हैं
इन आत्माओं की कभी मृत्यु नहीं होती
ये तबादला पसंद करती हैं
पाँच साल में बदलने वाली सरकार की तरह
अपना चोला बदल सकती हैं
लाचारी, भुखमरी रिश्वतखोरी और
भ्रष्टाचार की आत्माएँ बड़ी देशभक्त हैं
भारतभूमि से तो इन्हें जन्मजात प्रेम है
कभी नेता. इंजीनियर, डॉक्टर
तो कभी बेरोजगार और बीमार
इनका चोला तो यह बदलेंगी
लेकिन ये अमर आत्माएँ
भारत का दामन न छोड़ेंगी
यह एक कटु सत्य है
किंतु
सबके लिए विचारणीय तथ्य है

हम कौन थे ? क्या हो गए ? और क्या होंगे अभी ?............... आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी

’आजादी’ क्या सिर्फ एक शब्द है या फिर इस शब्द में बहुत गहराई है ? कुछ ऐसे ही सवाल अक्सर उमड़ते रहते हैं । लेकिन इसका उत्तर आज में नहीं, उस अतीत के बीज में है जो आजादी के पहले की पृष्‍ठभूमि की गोद में छिपा है । देश में राजा-महाराजाओं का शासनकाल था । भारत भूमि धन-धान्य तथा प्राकृतिक संपदाओं से पूर्ण थी । भारत वर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था । ऋषि-मुनियों की भूमि, सत्य-अहिंसा जैसे मानव मूल्यों की जननी भारतमाता हिमालय का मुकुट धारण किए समुद्र सिंहासन पर विराजित थी । हर तरफ यही स्वरलहरी गूँजती थी-
१-जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया

देश में हर तरफ लहलहाती फसलें ऐसी प्रतीत होती थीं जैसे भारत की धरती सोना उगलती है । चहुँ और सुख-शांति का वातावरण था । प्यार की गंगा बहती थी । हमारी देश भूमि ने केवल सोना ही नहीं उगला अनेख रत्नों को भी जन्म दिया है । इन रत्नों में गांधी, सुभाष, भगत सिंह, आजाद आदि का नाम अविस्मरणीय है । इसीलिए आज भी हमारा दिल गा उठता है-
२- मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती

जब हमारी भारतभूमि सुख और अमन की पैदावार कर रही थी । तभी देश में फिरंगियों ने अपने पैर जमाने शुरु किए और देखते ही देखते ये फिरंगी पूरे भारत पर छा गये । उन्होंने चैन और अमन की धरती पर फूट और हिंसा की खेती शुरु कर दी । भाई-भाई को आपस में लड़वा दिया । जहाँ प्यार की गंगा बहती थी वहाँ अब खून की नदियाँ बहने लगीं थी । तब देश में उमड़ा इंकलाब का सैलाब । यह सैलाब ऐसा था कि भारतवासियों का रोम-रोम देशभक्‍ति की आग से जल उठा । जनता अपने प्राणों की बलि देकर भी भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए तड़प उठी। हर भारत वासी यही कहता----
३-ए वतन, ए वतन मुझको तेरी कसम

देश का बच्चा-बच्चा आजादी के हवन कुंड में अपनी आहुति देने के लिए तैयार था। यही नहीं भगत सिंह जैसे आजादी के परवाने तो आजादी को अपनी दुल्हन कहते थे । वो कहते थे कि -"माँ तू मेरा बसंती चोला रंग दे मैं आजादी की दुल्हन को ब्याह कर लाऊँगा । जब भगतसिंह., सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई तब भी उनके मुख से यही शब्द निकले थे-
४-मेरा रंग दे बसंती चोला

हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों तथा आजादी के परवानों ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए तब जाकर हमें यह आजादी नसीब हुई । उन्होंने तो आजाद भारत की झलक न देखी पर हमें वो आजादी की साँसे दे गए । एक उम्मीद और एक आस लिए जाते-जाते सिर्फ यही कह गये " कर चले हम फिदा जान और तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों"
५-कर चले हम फिदा जान

हमारे देश के वीर जवानों ने हमेशा अपना कर्तव्य निभाया है और आगे भी निभाते रहेंगे । चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर कारगिल युद्ध वे कभी भी अपने फर्ज से नहीं डिगे । उनके मन में हमेशा यही डर था कि कहीं आने वाले कल में कोई उन्हें इल्जाम न दे ।
६-देखो वीर जवानों अपने खून पे ये इल्जाम न आये

खैर हमारे वीर जवानों और शहीदों ने तो अपना फर्ज़ बखूबी निभाया है। लेकिन प्रश्न तो यह उठता है कि हमने क्या किया ? आजादी के चौंसठ सालों में हम क्या से क्या हो गए । क्या हमारी आजादी इतनी सस्ती है ? क्या हमारे वीर-जवानों का खून इतना सस्ता है ? कौन है जो आगे आए और कहे "नहीं, हम अपनी आजादी को ऐसे ही मिटा नहीं सकते ।
७-अपनी आजादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं

दोस्तों आज जो देश में हालात हैं, वह फिर से उन्हीं पुराने दिनों की याद दिलाते हैं। आपसी मतभेद, आतंकवाद, जातिवाद आदि अनेक दानव भारतभूमि को फिर से निगलने को तैयार खड़े हैं । यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार हमारा देश फिर से विदेशी ताकतों का गुलाम बन जाएगा और फिर से जिन्दगी मौत के समान हो जाएगी । इसलिए सोचो और समझो-
८-ज़िन्दगी मौत न बन जाए सँभालों यारो

कहा गया है "गर तुझे तेरी गलती का एहसास है, फिर तेरे सुधरने की आस है" यदि हम सब भी अपनी गलतियों का एहसास कर स्वयं को सुधारेंगे तो एक अच्छे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं । यदि हमें देश और आजादी का महत्व जानना है तो उन शहीदों की कुर्बानियों को याद करो जिन्होंने सरहद पर जान गँवाई और हमें आजाद भारत दे गए-
९-ए मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी

यदि हम सब सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो आइए एक वादा करिए और कसम उठाइए कि "आज से जो भी करेंगे देश के लिए करेंगे चाहे जान भी चले जाए पीछे नहीं हटेंगे"-
९-हर करम अपना करेंगे, ए वतन तेरे लिए


शनिवार, 13 अगस्त 2011

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

आँखें हो जाती है नम आज भी
जब बजती है यह धुन
"अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो"
और दीमक की तरह चाटने लगता है
एक बार फिर शर्मिन्दगी का घुन

जब आजादी के परवानों ने
दी थी अपनी जानों की आहुतियाँ
कही विश्वास था उनके हृदय में
अब सँभालेंगी वतन को नव जवानियाँ

हाँ बहुत सँभाल लिया है हमने वतन को
तिजौरियों में सुरक्षित किया है धन को
अमीरों को और भी अमीर बना दिया है
गरीबों को मौत की कगार पर खड़ा किया है

पिछले कई सालों में हजारों योजनाएँ चलाईं हैं
इसी के जरिए हमारी जेबें भर पाई हैं
संस्कृति की रक्षा के नाम पर अनेक जुलूस निकाले
वैलेंनटाइन डे पर कईयों के मुँह किये काले

यही नही हमने स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर
कई पार्क तथा मार्ग बनवाए हैं
जरूरत पड़ने पर उनके जन्म-मरण दिन पर
अक्सर मेले लगवाए हैं

बहुत कुछ किया है हमने फिर भी
क्या है जो धिक्कारता है
कचोटता है आत्मा को
और अंदर से पुकारता है

शायद यह है हमारा अंतर्मन
जब भी सुनता है यह धुन
"अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो"
हर बार जगा देता है शर्मिंदगी का घुन
कहता है इस बार तो अपने दिल की सुन

बुधवार, 10 अगस्त 2011

रक्षाबंधन का धागा

यह धागा बड़ा ही करामाती है
लड़कों की जाति इससे बहुत घबराती है
कहीं बाँध न दे कोई इसे कलाई में
इसलिए रात भर नींद न आए रज़ाई में

ख्वाब में भी कह न दे, भाई कोई
आँखें बंद करने से अक्सर डर जाते हैं
हसीन लड़की के हाथ में राखी देख
’गधे के सिर से सींग’ के जैसे गायब हो जाते हैं

कभी-कभी इनके दिमाग में यह प्रश्‍न भी उठता है
यह रक्षाबंधन का त्योहार आंखिर क्यों होता है ?
कितना कठिन है दूसरे की बहन से राखी बँधवाना
इससे ज्यादा तो सरल है , ज़हर पीकर मर जाना

लेकिन इस धागे का मोल है जिसने जाना
उसने ही सीखा सच्चा रिश्ता निभाना
यह धागा केवल भाई-बहन तक ही नहीं सीमित है
इस धागे की सीमा रेखा तो बहुत ही विस्तृत है

यह धागा, एक वचन है - रक्षा का
कभी नर तो कभी नारी के हिस्से का
समझो, इस धागे के पीछे छुपी भावनाओं को
और समेट लो कलाई में बँधी शुभकामनाओं को

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

रक्षाबंधन-एक रिश्ता धागे का

बचपन में कभी माँ ने समझाया था
कि यह केवल एक धागा नहीं है,
एक विश्‍वास है, जो उम्र के साथ गहरा होता जाता है
हमारा इतिहास भी तो यही बताता है
तब लगता था कि क्या कभी कोई एक रिश्ता
एक धागे का मोहताज हो सकता है
क्या एक पतला सा तार
किसी रिश्ते का आधार हो सकता है
उम्र के साथ जब हुई रिश्तों की समझ
तब समझ में आया इस धागे का महत्व
क्या गज़ब की शक्‍ति है इस धागे में
रानी कर्मावती ने बाँधा हुमायुँ को रक्षा के वादे में
कभी यह धागा कृष्ण की कलाई पर बँधा था
द्रोपदी का चीर हरण, इसी वचन से बचा था
जब इन्द्र ने पत्नी से यह रक्षा कवच बँधवाया था
तभी तो देवों ने मिल कर दानवों को हराया था
युग बदले पर न बदली कभी इस धागे की कहानी
अपनों के साथ परायों ने भी, इसकी कीमत जानी
धर्म और जाति से ऊपर है, यह प्रेम का धागा
सरहदों के पार से भी, निभाता आया अपना वादा
यह तो है एक मन से मन का संगम
एक नर का नारी से रक्षा का बंधन



रविवार, 7 अगस्त 2011

ऐ दोस्त


कब तुमने मेरा हाथ थामा
पता ही न चला
कब तुम मेरे अज़ीज बन गये
पता ही न चला

आहिस्ता से रगों में बहते लहु की तरह
कब धड़कनों में उतर गये
पता ही न चला

बचपन की गलियों से गुजरते हुए
यौवन की दहलीज़ तक
कब रिश्ते गहराते चले गए
पता ही न चला

आज जब दूर हो तो
इस गहराई की हुई है भनक
हर रिश्ते की खुशबू से
आती है बस तेरी ही महक

कब तेरा दामन छूटा
पता ही न चला
कब तू मुझसे रूठा
पता ही न चला

आ..एक बार आजा,
देती हैं सदाएँ, मेरी धड़कनें तुझको
अधूरी हूँ तेरे बिना,
आज यह एहसास है मुझको

भूल कर सब, ढूँढें एक मौका नया
आ फिर शुरु करें दोस्ती का सिलसिला

ऐ यार सुन

ऐ यार सुन यारी तेरी
हमें आज भी बहुत प्यारी है
आँखें हो बंद या हो खुलीं
तस्वीर इनमें तुम्हारी है

हम हैं कहाँ, तुम हो कहाँ
संग मेरे यादों का कारवाँ
ऐसा लगे तुम हो यहीं
जैसे चलें संग साँसे मेरी
आँखें हैं मेरी पर इनमें रोशनी तुम्हारी है
ए यार सुन यारी तेरी
हमें आज भी बहुत प्यारी है

भीड़ में हो या अकेले में
गलियों में हों या मेले में
आज भी जब कोई आवाज़ आती है
ए दोस्त तेरी याद चली आती है
दिल है मेरा पर धड़कन इसमें तुम्हारी है
ए यार सुन यारी तेरी
हमें आज भी बहुत प्यारी है