बुधवार, 10 अगस्त 2011

रक्षाबंधन का धागा

यह धागा बड़ा ही करामाती है
लड़कों की जाति इससे बहुत घबराती है
कहीं बाँध न दे कोई इसे कलाई में
इसलिए रात भर नींद न आए रज़ाई में

ख्वाब में भी कह न दे, भाई कोई
आँखें बंद करने से अक्सर डर जाते हैं
हसीन लड़की के हाथ में राखी देख
’गधे के सिर से सींग’ के जैसे गायब हो जाते हैं

कभी-कभी इनके दिमाग में यह प्रश्‍न भी उठता है
यह रक्षाबंधन का त्योहार आंखिर क्यों होता है ?
कितना कठिन है दूसरे की बहन से राखी बँधवाना
इससे ज्यादा तो सरल है , ज़हर पीकर मर जाना

लेकिन इस धागे का मोल है जिसने जाना
उसने ही सीखा सच्चा रिश्ता निभाना
यह धागा केवल भाई-बहन तक ही नहीं सीमित है
इस धागे की सीमा रेखा तो बहुत ही विस्तृत है

यह धागा, एक वचन है - रक्षा का
कभी नर तो कभी नारी के हिस्से का
समझो, इस धागे के पीछे छुपी भावनाओं को
और समेट लो कलाई में बँधी शुभकामनाओं को

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