शनिवार, 20 अगस्त 2011

जल उठी हैं चिंगारियाँ



जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना



जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है वो पावत है
यह बात कोई झूठी नहीं
एकदम सच्ची कहावत है



इतना खो चुके हैं कि अब
खोने को कुछ बाकी नहीं
इतना रो चुके हैं कि अब
आँखों में कोई आँसू ही नहीं

यह लौ लगी है मुश्किल से
इस लौ को अब जलाके रखना

जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना



क्या सोचा था क्या पाया हमने
आजादी का मोल भुलाया हमने
भ्रष्‍टाचार के रावण को
खुद ही तो खून पिलाया हमने


बहुत हो चुका अब और नहीं
हम खुदगर्ज़ थे कमजोर नहीं
जो जाग उठे हैं तंद्रा से
तो इंकलाब की भोर हुई

अब डटे रहो, न थक जाना
सबका होंसला बनाके रखना



जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना

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