शनिवार, 23 जुलाई 2011

देशभक्‍ति- एक दबी भावना

जल सकती है ये आग कभी भी
राख के नीचे है, चिंगारी दबी सी
जरूरत है, एक हवा के, झोंके की
जो सींच दे जड़, आग के शोले की

फिर देखो, इस कदर उठेगा धुआँ
इन लपटों से, जल पड़ेगा, रुआँ-रुआँ
यह सिर्फ तूफान के पहले की, है शान्ति
फिर ये लहरें ही, बन जाएँगी, क्रान्ति

जो धीरे-धीरे साहिल पर दस्तक देती हैं
कर दे अनसुनी, तो उसको चपेट में, ले लेती हैं
इसी तरह, यह भावनाओं का, ज्वारभाटा है
जिन्हें तलाश है, उस चंद्र की, जो इन्हें जगाता है

एक बार, होने दो मन का मन से संगम
फिर देखना इसकी शक्‍ति का प्रदर्शन
प्रलय होगी, नष्‍ट होंगे, बुराई के दानव
होगा देश में एक भारी परिवर्तन

बुधवार, 20 जुलाई 2011

बड़ों की सीख

माँ कहती है पढो-लिखो
तुम बन जाओ होशियार
काम करो नित अच्छे-अच्छे
दो जीवन को आधार

पापा भी मुझको अक्सर
यही बात समझाते हैं
बेटा मेहनत से ही हम
अपना भाग्य बनाते हैं

दादा कहते सुन लो राजू
बात हमारी ध्यान से
सदा बड़ों का आदर करना
जीना सीना तान के

दीदी मेरी बड़ी सयानी
कहती है बारम्बार
प्यारे भैया नासमझी से
न खो देना ये दुलार

मैंने भी है मन में ठानी
तोड़ूँगा ना विश्‍वास
सभी बड़ों का कहना मानूँ
बनूँगा सबका खास

जिन्दगी

कभी यूँ भी करवट लेती है जिंदगी
पैरों से ज़मी खींच लेती है जिंदगी
जो अक्सर गुम रहते थे खयालों में उन्हें
हकीकत से रुबरू कर देती है जिंदगी
न होना कभी हकीकत से परे
एक नया सबक दे देती है जिंदगी
ये सिलसिला तो उम्र भर का है
हर पल इम्तहा लेती है जिन्दगी
कोइ कितना ही कोसे जिंदगी को यारों
खुशियों के पल भी तो देती है जिंदगी