शनिवार, 23 जुलाई 2011

देशभक्‍ति- एक दबी भावना

जल सकती है ये आग कभी भी
राख के नीचे है, चिंगारी दबी सी
जरूरत है, एक हवा के, झोंके की
जो सींच दे जड़, आग के शोले की

फिर देखो, इस कदर उठेगा धुआँ
इन लपटों से, जल पड़ेगा, रुआँ-रुआँ
यह सिर्फ तूफान के पहले की, है शान्ति
फिर ये लहरें ही, बन जाएँगी, क्रान्ति

जो धीरे-धीरे साहिल पर दस्तक देती हैं
कर दे अनसुनी, तो उसको चपेट में, ले लेती हैं
इसी तरह, यह भावनाओं का, ज्वारभाटा है
जिन्हें तलाश है, उस चंद्र की, जो इन्हें जगाता है

एक बार, होने दो मन का मन से संगम
फिर देखना इसकी शक्‍ति का प्रदर्शन
प्रलय होगी, नष्‍ट होंगे, बुराई के दानव
होगा देश में एक भारी परिवर्तन

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