रविवार, 26 जुलाई 2009

पिता

चाहें कोई भी देश हो, संस्कृति हो माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। यदि हम हिन्दी कविता जगत की कवितायें देखें तो माँ के ऊपर जितना लिखा गया है उतना पिता के ऊपर नहीं। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। आगे की पोस्ट हिन्दयुग्म पर पढ़ें ..........काव्यपल्लवन पर दीपाली पन्त तिवारी "disha"






पिता
एक ऐसा किरदार
जो दे जीवन को आधार
करता है भरण-पोषण
उठाये कन्धो पर हमारा भार

पिता
एक ऐसा व्य‌क्तित्व
जो दिखता है सख्त
किन्तु है कोमल ह्रदय
जीवन के पग-पग पर
हमको दिलाता विजय

पिता
एक नाम जो जरूरी है
यही हमारी पह्चान की धुरी है
यूँ तो जन्म देती है माँ
पर वो भी इस नाम के बिना अधूरी है

पिता
एक अटूट हिस्सा जीवन का
साथी हमारे बालपन का
मेला हो या हो भारी भीड़
दिखाये हमें दुनिया की तस्वीर

पिता
जिसके कांधों पर चढ़ इतराते हम
कभी घोड़ा बना उसे इठ्लाते हम
बनकर बच्चा हमारे साथ
मिलाता वो कदम से कदम

--दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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