मैं वृक्ष हूँ
जड़ें मेरी ज़मीन में हैं गढ़ी
आँखें मेरी आसमान से लड़ीं
स्वाभिमान से लहलहाता हूँ मैं
दानदाता कहाता हूँ मैं
मैं वृक्ष हूँ
मेरा रोम-रोम समर्पित है
मानवता के लिए, जो भी अर्जित है
दिन-रात लुटाता हूँ मैं
कभी नहीं जताता हूँ मैं
मैं वृक्ष हूँ
रोक लेता हूँ, भूमि के कटाव को
चढ़ी नदी के बहाव को
तापमान को गिराता हूँ मैं
बरसात भी करवाता हूँ मैं
मैं वृक्ष हूँ
पथिक को देता छाया
भूखे को कंद मूल
पंछियों को आसरा दिलाता हूँ मैं
जीवन आसान बनाता हूँ मैं
मैं वृक्ष हूँ
तुम्हारे घर में सजीं चीजों में
खेत-खलिहान और बगीचों में
शान से लहराता हूँ मैं
कागज़-कलम बनाता हूँ मैं
मैं वृक्ष हूँ
रीढ़ हूँ मैं तुम्हारी
मेरे बिना जीना भारी
बीज़ से बीज़ बनाता हूँ मैं
एक वृक्ष तुम भी लगाओ
बस इतना ही चाहता हूँ मैं
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
बैंगलूर (कर्नाटक)