घर से बाहर रखें कदम
आओ बच्चो स्कूल चले हम
स्कूल की दुनिया प्यारी है
सारे जग से न्यारी है
स्कूल तो मंदिर जैसा है
ज्ञान का दीपक जलता है
अज्ञानता को दूर भगाएँ
शिक्षक तुमको ऐसा पढ़ाएँ
छूट गए थे बस्ते तुम्हारे
भूल गए तुम सारे पहाड़े
अब नए तराने तुम गाओगे
जब रोज स्कूल तुम जाओगे
रोको तुम न अपने कदम
आओ बच्चो स्कूल चले हम
हो गयी सारी तैयारी है
स्कूल जाने की बारी है
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
बैंगलूर (कर्नाटक)
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