शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

चंद लम्हे फुर्सत के


दिनांक -26-05-2020


चुराकर चंद लम्हे फ़ुर्सत के

चली जाती हूँ मैं फिर वहीं

जहाँ लहलहाती है हरियाली

झूमती-नाचती है डाली-डाली

धानी चूनर ओढ़े धरती खिलखिलाती है 

चेहरे पर उसके ओस झिलमिलाती है

बैठ जाती हूँ, आगोश में बच्चों जैसे

छिपी रहती हूँ  सीप में मोती ऐसे

पंछी का मधुर स्वर आत्मा झंकृत कर

ले जाता है मुझे बचपन की डगर

डोलती थी मैं पगडंडियों पर आते-जाते

पशु-पक्षियों से थे मेरे कितने नाते

कल्पनाओं की उड़ान में भरती हूँ

चंद लम्हे फ़ुर्सत के मैं ऐसे जीती हूँ।



स्वरचित

©

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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