शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

दुनिया का चलन

दिनांक - 10.07-2019


सफलता के हमें, कई हिस्सेदार मिले

असफलता के हम, ख़ुद ज़िम्मेदार हुए

ये अजीब चलन है, दुनिया का

मतलब ना रहा, तो बेकार हुए


फ़ुर्सत के पल, अब मिलते नहीं

अपने आप से बाहर, निकलते नहीं

गैरों की बात, नहीं है ये

अपनों से भी हम, बेज़ार हुए


घर कहाँ रहे वो आँगन वाले

छत से छत जोड़, बतियाने वाले

जो रमते थे कभी मोहल्ले में

ए 'दिशा' अकेलेपन के तलबगार हुए


स्वरचित

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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