दिशा जिन्दगी की, दिशा बन्दगी की, दिशा सपनों की, दिशा अपनों की, दिशा विचारों की, दिशा आचारों की, दिशा मंजिल को पाने की, दिशा बस चलते जाने की....
मनुष्य के पास सवालों का पुलिंदा है
ढूँढकर उत्तर इन सवालों के वो जिंदा है
भटकता है तलाश में दिन-रात इस कदर
इसका मन-मस्तिष्क तो एक परिंदा है
स्वरचित
दीपाली 'दिशा'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें