शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

अंतिम यात्रा

 

दिनांक - 17-07-2019

शर्मा जी कब से टकटकी लगाए हाथ में लिए अपनी पुरानी घड़ी को देख रहे थे। न जाने कितनी ही यादें जुड़ी थीं इस बेकार सी दिखने वाली घड़ी से। आज भी रह-रहकर दादाजी का दमकता चेहरा और घड़ी देते हुए 'समय का हमेशा ध्यान रखने' की  उनकी सीख शर्मा जी को याद आ जाती है। यही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया था। लेकिन आज वह अकेले, इस पुश्तैनी घर में एक पालतू तोते, इस घड़ी और जोड़-तोड़ करके ख़रीदी गाड़ी के साथ दिन गुज़ार रहे हैं।

शर्मा जी के एक बेटा और एक बेटी है। दोनों विवाहित हैं और अब अपनी-अपनी जिंदगियों में व्यस्त हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि उन दोनों को अपने पिता से लगाव नहीं है या वे उनका ध्यान नहीं रखते। शर्मा जी का ही समय थम गया है। जब से उन्होंने अपनी पत्नी को खोया है तबसे वे उन्हीं  पलों में सिमट गए हैं। इस घड़ी, घर , गाड़ी आदि से जुड़ी पत्नी की यादों को वो कभी भुला नहीं पाए। इसीलिए उन्होंने इस घर को न छोड़ कर जाने का फ़ैसला किया।

शादी के बाद उन्होंने अपनी पत्नी सुरेखा को बताया कि यह घड़ी उनके दादा जी की निशानी है तो वो उसे इतना सहेजकर  रखतीं जैसे भगवान की मूरत हो।

घर के कोने-कोने में सुरेखा बसी थी। शर्मा जी का मानना था कि सुरेखा यहीं है उनके आस-पास। वो कहीं गयी ही नहीं। शर्मा जी जब-तब सुरेखा सुरेखा नाम लेकर बड़बड़ाते रहते।

दो दिन बाद सुरेखा जी की बरसी थी। दोनों बच्चे परिवार के साथ आने वाले थे। इस बार बच्चों ने ज़िद पकड़ ली थी कि शर्मा जी को उनके साथ चलना ही होगा। वे अब उन्हें यहाँ अकेला नहीं छोड़ेंगे।

शर्मा जी घर की एक-एक चीज़ और उससे जुड़ी यादों को अपने अंदर बसा लेना चाहते थे। वे बार-बार सुरेखा पुकारते और कहते सुनो तैयार हो जाओ, अब जाने का समय हो गया है।

इसी बीच शर्मा जी के बच्चे घर आते हैं। उनके नाती-पोते दूर से नानाजी-दादाजी आवाज़ लगाते हुए दौड़ते हुए शर्मा जी के पास पहुँचते हैं। शर्मा जी वहीं आराम कुर्सी पर हाथ में घड़ी और अपनी पत्नी की तस्वीर लिए  अचेत पड़े हैं। वहीं उनका पालतू तोता "चलो सुरेखा, जाने का समय हो गया है" की रट लगा रहा था। आज शर्मा जी, जीवन के अंतिम सफ़र पर निकल पड़े थे।


स्वरचित

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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