बुधवार, 2 दिसंबर 2020

स्त्री

 मुझे नाज है अपने अस्तित्व पर

मैं नित नए-नए रूप बदल कर

लिए भावनाओं का ज्वार- भाटा

चलती हूँ अविचल कर्तव्य पथ पर


अब नहीं रहती मैं डरी-डरी

रहती हूँ आत्मविश्वास से भरी

बदल गया है लोगों का चलन

जब से मैं दुर्गा रूप धरी


सभी चुनौतियों को स्वीकार कर

मैं बन रही हूँ अब आत्मनिर्भर

देख सकेगी दुनिया उड़ान मेरी

लिखूँगी नाम अपना फलक पर


दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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