बुधवार, 23 दिसंबर 2020

वर्ष 2020 के नाम पत्र


पता-

श्रीमान वर्ष 2020

वर्तमान नगर

शहर- जीवनगली


*अप्रत्याशित परिवर्तनों व जीवन की अमूल्य नियामतों का महत्त्व समझाने वाला वर्ष-2020*


प्रिय मित्र वर्ष-2020

तुम्हें प्यार भरा नमस्कार।

मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि तुम जिस उद्देश्य से आए थे उसमें अवश्य ही सफल हुए होगे। हम सब भी कुशल से हैं।

आज मैं आपके साथ आपके आगमन से लेकर विदाई की बेला तक के अनुभव को साँझा कर रही हूँ। बस यूँ जानिए कि जो भी उतार-चढ़ाव आए उन्हें इस पत्र में उड़ेल देना चाहती हूँ। आपको एक यादगार विदाई देने की ख़्वाहिश है मेरी। 

मुझे याद है कि कैसे हम सभी जनवरी में बड़ी बेसब्री से आपके आने की राह देख रहे थे। नए-नए सपने और उम्मीदों  की भारी-भरकम पोटली लेकर हमारे नयन आपको तक रहे थे। पर ये क्या आप आए तो लेकिन ऐसा लगा जैसे इस बार कुछ सबक सिखाने के लिए आए हैं।

हम लोग बस भाग रहे थे, बिना रुके, बिना सोचे-समझे, आपने तो बस ब्रेक ही लगा दिया। वो भी ऐसा-वैसा ब्रेक नहीं एयर प्रेशर वाला ब्रेक। पूरी दुनिया की रफ़्तार थाम दी। ये भी कोई तरीका होता है क्या अपनी बात समझाने का भला? हाँ मैं समझती हूँ  कि आप बताना चाहते थे कि हम ज़रा रुककर सोचे तो कि हम कहाँ जा रहे हैं, क्या कर रहे है, क्यों कर रहे हैं? आप चाहते  थे कि हम समय का महत्व जाने, जीवन का मोल समझें, अपनों के साथ की कीमत जाने। प्राकृतिक संसाधनों की इज्ज़त करें और मनुष्य हैं तो मनुष्यता निभाएँ स्वयं को ईश्वर से ऊपर न समझें।

ऐसा नहीं है कि हम नहीं समझते बस भटक जाते हैं, स्वार्थी हो जाते हैं। वैसे यह भी सच है हम मनुष्य होते ही ऐसे हैं जब तक उँगली टेढ़ी न की जाए हमें सीधे-सीधे बात कहाँ समझ में आती है। वैसे आपने हमें छकाया भी खूब और रुलाया भी बहुत है लेकिन अपनों के साथ के, खूबसूरत पल भी दिए हैं। आत्ममंथन करने का अवसर भी दिया है।

आपने हमें कृतज्ञता सिखाई है। आपने सिखाया है कि हम जो भी हैं, जहाँ भी है और जैसे भी हैं कृतज्ञ बने हो सकता है किसी दूसरे के पास वो भी न हो जो हमारे पास है। 

सच कहूँ तो मैं आपको दिल से धन्यवाद कहना चाहती हूँ कि आपने इन अप्रत्याशित परिवर्तनों के बीच हमें मज़बूती से टिके रहना सिखाया। आपने जो भी सख्ती दिखाई उसमें छिपी सीख गहराई तक पहुँची है। बस इतनी ही विनती है कि हमारी नादानियों को अब दरकिनार करके खुशियों के फूल खिला दीजिए। खुशियों के पैगाम के साथ हमसे विदा लीजिए।

आपको प्यारी मुसकान के साथ विदाई।

शुभकामनाओं सहित

आपकी मित्र

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

बंगलुरू(कर्नाटक)

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