शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

गुरुजी की बेटी से गुरु तक

खुद को सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मेरे माता पिता एक शिक्षक हैं और मैं उनकी पुत्री । छोटेपन में जब कभी भी हम मोहल्ले में सहेलियों के घर जाया करते थे या कभी बाज़ार में कोई अनजाना मिल जाता था तो अक्सर उनसे ऐसे पहचान होती थी हमारी- "अरे ये गुरुजी की बिटिया है ।" बात-बात में पता चलता कि सहेली के मम्मी को या मामा को, मेरे पिताजी ने पढ़ाया है या फिर बाज़ार में मिले अंकल जी भी पिताजी से शिक्षा ले चुके हैं। उनकी आँखों की चमक बताती थी कि उनकी नज़रों में मेरे पिताजी के लिए कितना सम्मान है । यही नहीं सब्ज़ीमंडी में सब्ज़ी बेचने वाले अंकल भी पिताजी के शिष्य निकल आते और अक्सर पिताजी के साथ सब्ज़ी लेने जाने पर वह शिष्य गुरुजी की बेटी होने के नाते सम्मान पूर्वक मुफ़्त में टमाटर खाने को देते । मेरा मन बाग-बाग हो उठता । मैं सोचने लगती कि शिक्षक बनने के तो बहुत फायदे हैं । सब लोग कितना सम्मान देते हैं ।
आज मैं स्वयं एक शिक्षक हूँ और माता-पिता के संस्कार मुझे हमेशा सच्चे शिक्षक होने की राह पर अग्रसर करते हैं । कई बार बच्चों की पढ़ाई के प्रति उदासीनता मुझे विचलित कर देती है । यह भी लगता है कि शायद बच्चों में शिक्षकों के प्रति सम्मान भाव नहीं है जो पहले कभी हुआ करता था । लेकिन यह भी सच है कि सम्मान जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता इसके लिए आपको बहुत कुछ देना पड़ता है । यदि आप पूरी ईमानदारी से बच्चों को प्रेरित करें और उनको सही-गलत का ज्ञान दें तो आपकी मेहनत बेकार नहीं जाती । बच्चों की कई छोटी-छोटी बातें आपको एहसास करा देंगी कि आप उनके लिए क्या मायने रखते हो । आपकी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़ेंगे । मेरे पास शब्द नहीं हैं यह सब बयाँ करने के लिए कि मैं क्या महसूस कर रही हूँ ।
आज का दिन मैं हमेशा याद रखूँगी । आज कक्षा-५ में, जब मैं पढ़ाने के लिए पहुँची तो हैरान रह गई कि मेरे विद्‍यार्थियों ने मेरे जन्मदिन की तैयारियाँ कर रखी हैं । न जाने उन्हें कहाँ से पता चला और सबसे बड़ी बात उन्होंने याद रखा । हांलाकि मेरा जन्मदिन १ फरवरी को होता है लेकिन क्योंकि १ फरवरी को शनिवार की छुट्‍टी है इसलिए सभी छात्रों ने आज शुक्रवार ३१ जनवरी को ही कक्षा में मेरे लिए छिपकर यह कार्यक्रम तैयार किया था । यह सब मेरी आशाओं से परे था । जैसे ही मैं कक्षा में पहुँची सभी छात्र-छात्राएँ जोर से चिल्ला उठे -"हैप्पी बर्थ डे मैडम ।" उन सभी ने ब्लैकबोर्ड पर जन्मदिन की बधाइयाँ देते हुए सजावट की हुई थी । सभी बच्चों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया और फिर उनके द्‍वारा बनाए हुए ग्रीटिंग कार्डों की बरसात हो गई । उनका उत्साह बस देखने लायक था । उन्होंने मुझे पढ़ाने भी नहीं दिया और दो बच्चे स्वयं टीचर बनकर मेरा रोल अदा करने लगे । सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था । किसी ने गाना गाया तो किसी ने नाच किया । उनके संग बच्चा बन मैं भी नाचने-गाने लगी ।

मुझे बहुत गर्व है कि मैं एक शिक्षक हूँ और अपने विद्‍यार्थियों के मन में अपने लिए  जगह बना पायी हूँ । गुरुजी की बेटी से गुरु बनने का यह सफ़र इतना आसान भी नहीं था लेकिन छात्रों की आँखों में अपने प्रति प्यार व सम्मान देखकर वो सभी कठिनाइयाँ बहुत छोटी प्रतीत हो रही हैं । उनके दिए ग्रीटिंग कार्डों में लिखे संदेश पढ़कर अपने अस्तित्व का एहसास हुआ । मैं अपने सभी छात्रों को हृदय से धन्यवाद करती हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ ।































कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें