रविवार, 4 सितंबर 2011

शिक्षक

मिटा देता है अज्ञान के अँधेरे
जला देता है ज्ञान के दीपक
खुद जलता है बनके शम्मा
तभी कहलाता है वो शिक्षक

जैसे एक मूर्तिकार सँवारता है मूरत
शिक्षक देश का भविष्य उकेरता है
ढाल के ज्ञान के साँचे में सबको
नित नई-नई ऊँचाइयाँ देता है

प्रथम सीढ़ी बनकर देता है
कल्पनाओं को सच्ची उड़ान
लड़खड़ाते हुए नन्हे कदमों में
डालता है आत्मविश्वास की जान

खुश होता है बनके नींव का पत्थर
खड़ी करता है चरित्र की उत्तम इमारत
पैदा करता है नर में कृष्ण और राम को
जो इतिहास रच बढ़ाते हैं गुरु के नाम को

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