सोमवार, 15 जून 2009

पत्रकारिता:गये वो ज़माने

गये वो ज़माने जब पत्रकारिता आम इंसा की आवाज बना करती थी
तब तो पत्रकारों की तस्वीर भी अलग हुआ करती थी
ना जाने कितने ही कवियों ने कलम को तलवार बनाया
देश और समाज से जुड़े कई मुद्दों को उठाया
पर बदल गया है आजकल इसका स्वरूप
नोटों की ताकत ने बना दिया है इसे कुरूप
अब कलम एक हथियार है
आम जनता ही इसका शिकार है
आज ख़बरों में एन्टरटेनमैंट मिलता है
इसी से तो टीआरपी लेवल बढ़ता है
निज स्वार्थ ही सर्वोपरि है
देश और जनता की किसे पड़ी है

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी सभी रचनायें पसन्द आयीं । बधाई । जहां तक पत्राकारिता की बात है तो इस लोकसभा चुनाव में किस तरह चुनाव सभायें कवर करने के लिये उम्मीदवारों को पैकेज दिये गये यह आप इस "महीने" की हंस में देख सकती हैं ।

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