मंगलवार, 23 जून 2009

क्यों जन्म लूँ मैं धरती पर

हाहाकार मचा तब पृथ्वी पर
घटने लगी जब कन्या जन्म दर
हर तरफ पुरूष ही दिखते थे
सब नारी को तरसते थे
इन्द्र का भी सिंहासन डोला
वो पहुँचा प्रभु के पास और बोला
हे नाथ, करो कुछ ठोस उपाय
कैसे पृथ्वी पर कन्या जाय
सब देवों ने किया विचार विमर्श
ऋषियों से भी लिया परामर्श
चिंतन कर खोजा एक उपाय
एक नारी की उत्पत्ति की जाय
प्रभु ने की नारी की रचना
उद्देश्य बताया उसको अपना
जल्दी जाओ तुम धरती पर
बढा़ओ कन्या जन्म दर
नारी बोली क्यों जाऊँ मैं
क्यूँ दर-दर की ठोकर खाऊँ मैं
घर में न मेरा कोई सम्मान
बाहर भी मिले मुझको अपमान
मैं सृष्टि रचती हूँ अपने अंदर
कठिन प्रसव पीडा़ सहकर
मुझको क्या फल मिलता उसका
सौदा होता मेरी अस्मत का
है मरण मुझे स्वीकार प्रभु
पर जन्म न लूँ मैं अब कबहु
प्रभु खड़े रहे निरूत्तर
अब कौन जाये धरती पर ?

1 टिप्पणी:

  1. सार्थक प्रश्नो को संजोये सार्थक कविता --
    बहुत अच्छी रचना

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