शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

एक जिन्दगी और अन्दाजे बयाँ कितने

दोस्तों कुछ चीजें ऐसी होती है जो हमारी जिन्दगी में धीरे-धीरे कब शामिल हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता. एक तरह से इन चीजों का न होना हमें बेचैन कर देता है. जैसे सुबह एक प्याली चाय हो पर इन चाय की चुसकियों के साथ अखबार न मिले, फिर देखिए हम कितना असहज महसूस करते है. देखिए ना, आपका और हमारा रिश्ता भी तो रविवार सुबह की काँफी के साथ ऐसा ही बन गया है. अगर रविवार की सुबह हो लेकिन हमें हिन्दयुग्म पर काँफी के साथ गीत-संगीत सुनने को न मिले तो पूरा दिन अधूरा सा रहता है पता ही नहीं लगता कि आज रविवार है. यही नहीं काँफी का जिक्र भर ही हमारे दिल के तार हिन्दयुग्म से जोड़ देता है.आइये आगे पढ़ते हैं मेरी कलम से हिन्दयुग्म पर आवाज में रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत

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