गुरुवार, 6 अगस्त 2009

एक प्यारा सा बंधन



संस्कृतियों की चर्चा की जाये तो भारतीय संस्कृति लाजवाब है. इस एक संस्कृति में ही ना जाने कितनी संस्कृतियों का समावेश मिलता है. जितने धर्म उतने ही तीज त्यौहार और हर त्यौहार का अलग ही महत्व है. होली-दीवाली हो या फिर दशहरा, जन्माष्टमी हो या रक्षाबंधन, सभी त्यौहार भारतीय संस्कृति की छाप दिखाते हैं. वैसे तो सभी त्यौहार खास हैं लेकिन रक्षाबंधन की बात ही निराली है. रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जो अपनों को ही नहीं बल्कि परायों को भी आपसी बंधन में बाँध देता है. एक ऐसा बंधन जो प्यार, विश्वास और रक्षा के सूत्र से बँधा होता है. एक ऐसा रिश्ता जिसमें रक्षा का वचन होता है और साथ ही साथ लम्बी उम्र की कामनायें होती हैं.
रक्षाबंधन एक भारतीय त्यौहार है. रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाईयों की कलाई पर धागा बाँधती हैं. यह धागा रक्षा, भाईचारे, शुभकामनाओं तथा लम्बी उम्र का प्रतीक होता है. यह शुभकामनाएं अपने लिये ही नहीं होती बल्कि उसके लिये भी होती है जिसकी कलाई पर धागा बाँधा जाता है. रक्षा का अर्थ है सुरक्षा यानि एक ऐसा रिश्ता जिसमें बुराईयों तथा विपत्तियों से सुरक्षा का भाव छिपा है. यह भाव हमें शारीरिक सुरक्षा के साथ मानसिक सुरक्षा का भी आभास देता है.
रक्षाबंधन का त्यौहार पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है इसलिए इस दिन को राखी पूर्णिमा भी कहते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. यह त्यौहार उत्तर तथा पश्चिम क्षेत्रों में राखी पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है तो पश्चिमी घाटों में इसे नारियल पूर्णिमा कहते हैं. यहाँ नारियल को पूर्ण चाँद का प्रतीक माना जाता है. दक्षिणी भाग में राखी का त्यौहार अवनि अट्टम तथा मध्य भारत में कजरी पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. नाम चाहे जो भी हो पर भाव एक ही है भाईचारा, प्रेम और सौहार्द्र.
रक्षाबंधन त्यौहार को मनाने के पीछे कई किवदन्तियाँ हैं. आज यह त्यौहार भई-बहिन के बीच मनाया जाता है लेकिन कहते हैं कि जब देवासुर संग्राम हुआ था उस दौरान दैत्यराज ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था और इन्द्र ने देव गुरु वृहस्पति की शरण ली तब उन्होंने एक रक्षासूत्र तैयार कर इन्द्र की पत्नि देवी शचि को इन्द्र की कलाई पर बाँधने का निर्देश दिया जिसके फलस्वरुप केवल इन्द्र की रक्षा हुयी अपितु युद्ध में विजय की भी प्रप्ति हुई. तभी से यह रक्षा सूत्र बाँधने का प्रचलन है.
रक्षाबंधन का त्यौहार इतने तक ही सीमित नहीं है. एक अन्य कहानी के अनुसार कहा जाता है कि भगवान यमराज की यमुना नाम की एक बहिन थी. वह प्रत्येक श्रावण पूर्णिमा को अपने भाई यमराज की कलाई पर पवित्र धागा बाँधती थी. तभी से यह त्यौहार बहनों द्वारा भाईयों की कलाई पर राखी बाँधने का त्यौहार बन गया. इस दिन बहने भाईयों की कलाई पर राखी बाँध कर उनके लम्बे तथा स्वस्थ जीवन की कामनायें करती हैं. इसके बदले में भाई उन्हें रक्षा का वचन देते हैं.
इसी तरह यह भी कहा जाता है कि बालि भगवान विष्णु का परम भक्त था. इस बात से इन्द्र को अपने सिंहासन की चिंता रहती थी. इन्द्र द्वारा भगवान विष्णु से सहायता माँगने पर भगवान विष्णु ने बालि को पृथ्वी के नीचे पाताल में फेंक दिया. जब बालि ने प्रभु से विनती की तब प्रभु ने बालि को उसके राज्य की रक्षा करने का वचन दिया और भगवान विष्णु वैकुण्ठ छोड़ बालि के राज्य की रक्षा करने लगे.तब लक्ष्मी जी एक गरीब ब्राह्मणी का रुप धारण कर बालि के पास गयीं. उन्होंने बालि को भाई मान कर उसकी कलाई पर राखी बाँधी. उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी. जब बालि ने लक्ष्मी जी से उनकी इच्छा पूछी तो लक्ष्मी जी अपने असली रूप में आयीं और बालि से कहा कि मै यहाँ इसलिए आयी हूँ क्योंकि प्रभु विष्णु यहाँ हैं अगर आप प्रभु विष्णु को वैकुण्ठ भेज दें तो अचछा होगा. तब बालि ने अपना भात्र धर्म निभाते हुए उसी क्षण प्रभु से वैकुण्ठ जाने प्रार्थना की.
रक्षाबंधन से कई एतिहासिक कहानियाँ भी जुड़ी हैं. इनमें से अपने पति एलैक्जेन्डर की रक्षा के लिये एलैक्जेन्डर की पत्नि द्वारा उनके शत्रु पोरस को राखी बाँधने तथा चित्तौड़ की राजपूत रानी द्वारा अपनी रक्षा के लिये मुगलशासक हुमायुँ को राखी बाँधने की कहानियाँ प्रचलित हैं. भारत के प्रसिद्ध कवि रविन्द्रनाथ टैगौर ने राखी का त्यौहार मुख्य रुप से विभिन्न जाति-धर्मों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने के लिये प्रयुक्त किया था.
आज राखी का त्यौहार सगे भाई-बहनों के संबंध से भी बढ़कर है. आजकल महिलायें अपने भाईयों की कलाईयों पर भी राखी बाँधती हैं और उन पुरुषों की कलाईयों पर भी जिनके बहिने नहीं हैं. राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री की कलाई पर भी राखी बाँधी जाती है तथा देश के सैनिकों की कलाई पर भी. इस तरह राखी का त्यौहार अब एक सामाजिक त्यौहार बन गया है जो पूरे देश में भाईचारे और प्यार का संदेश देता है..

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