सोमवार, 27 जुलाई 2009

सुनिए ऑनलाइन कवि सम्मेलन जुलाई(2009) का बारिश अंक

सावन की रिमझिम फुआरें तन-मन दोनों को भिगो जाती हैं। टिप-टिप करती बारिश की बूंदे जैसे-जैसे धरती पर गिरती है वैसे-वैसे ही भावनाओं का सागर उफान पर आने लगता है । यही वो पल होता है जब मुख से निकले शब्द कलमबद्ध हो कविता का रूप लेते हैं। ये शब्द रुपी बूँदें मन की सूखी धरा को सींच जाती है और एक नई कल्पना जन्म लेती है। बारिश की ये बूंदे और क्या-क्या असर दिखाती हैं जानने के लिए के लिए पढ़ें/सुनें हिन्दयुग्म पर कविसम्मेलन.........बारिश

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