ऊँची शिक्षा और एक अच्छी नौकरी, बस यही एक सपना होता है हर माँ -बाप का।अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वो रात-दिन एक करके पैसा इकठ्ठा करते हैं और अपने बच्चों को भेज देते हैं दूर बड़े-बड़े कालेजों में शिक्षा के लिए। लेकिन उन्हें कहाँ पता होता है की वहां रैगिंग रुपी काल उनका इन्तजार कर रहा है।
सच ही तो है आज रैगिंग काल का ही रूप ले चुका है।रैगिंग रुपी काल आज हमारे देश के सैकडों होनहार बच्चों को निगल रहा है। जो बच्चे दिन-रात मेहनत कर कालेजों में एक उम्मीद के साथ दाखिला लेते हैं उन्हें वहां रैगिंग का सामना करना पड़ता है और उनके सपने वही दम तोड़ देते हैं।यूँ तो रैगिंग कानूनी अपराध बन चुका है और इसे रोकने के लिए कई क़ानून भी बन गए हैं।यही नही कालेजों के अधिकारी भी इस पर पूर्णतया रोक लगाने के दावे करते नजर आते हैं लेकिन आज भी कितने ही छात्र रैगिंग का शिकार हो रहे हैं।
यदि हमें रैगिंग को रो़कना है तो इसका उपाय केवल क़ानून बनाना नही वरन छात्र-छात्राओं का सहयोग भी जरूरी है।सीनियर विद्यार्थियों को भी सोचना चाहिए की जो उन्होंने सहा है वो आने वाले विद्यार्थियों को न सहना पड़े। तभी रैगिंग पर रो़क लग सकेगी ।वैसे भी विद्यार्थी देश का भविष्य हैं। उनके हाथों में पुस्तक और कलम तथा आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने झिलमिलाने चाहिए ,न की क़ानून की जंजीरें.
दिशा जिन्दगी की, दिशा बन्दगी की, दिशा सपनों की, दिशा अपनों की, दिशा विचारों की, दिशा आचारों की, दिशा मंजिल को पाने की, दिशा बस चलते जाने की....
शुक्रवार, 29 मई 2009
क्या ये आतंक नही
भारतीय संस्कृति धर्मनिरपेक्षता ,सहनशीलता और शान्ति का प्रतीक रही है।किंतु आज बदलते परिवेश में सब कुछ पीछे छूट गया है । एक समय था जब गांधीजी ने अहिंसा के पथ पर चल कर आजादी की लडाई लड़ी थी तथा अपने अहिंसा के पथ पर अडिग रह अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था ,पर आज लोग गांधीगिरी नही दादागिरी में विश्वास करते हैं। बिना जाने की उनके कृत्य का क्या परिणाम होगा वो हो-हल्ला शुरू कर देते हैं।
जम्मू ,लुधियाना ,फगवाडा,पंजाब ,जालंधर आदि स्थानों में घटित घटनाक्रम ,लोगो में देश के प्रति जिम्मेदारी का न होना और असहनशीलता का बदना दर्शाता है। क्या ये सही है की "करे कोई और भरे कोई "। ये सच है की वियना में भारतीय संतों के साथ जो घटित हुआ वह ग़लत था तथा पूर्णतया निंदनीय है किंतु इसका मतलब यह नही की हम विरोध करने के लिए अपने ही देश में दंगा करें अथवा अपने ही देश की संपत्ति का नाश करें। क्या कभी सोचा है की इन घटनाओं से कितने लोगों को कठनाइयों का सामना करना पड़ता है। यही नही इन बिगड़ते हालातों के चलते अनजाने ही कितने मासूमों को अपने जान गंवानी पड़ती है। हम आतंकवादियों को कोसते हैं,लेकिन विरोध जताने के लिए या फिर अपनी मांग मनवाने के लिए जो तरीका हम अपनाते हैं क्या यह किसी आतंकवादी घटना से कम है ?
जिन रेलों और बसों असुविधा होने पर हम शिकायतें करते नजर आते हैं ,उसी संपत्ति का नाश करने पर क्या हम अपने ही सुविधा के साधनों में कमी नही कर रहे हैं ? गलत बात का विरोध करना जरूरी है पर साथ ही विरोध करने का तरीका भी उचित होना चाहिए । देश के समस्त नागरिकों को एक बार इन पहलुओं पर जरूर सोचना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर विराम लगे।
जम्मू ,लुधियाना ,फगवाडा,पंजाब ,जालंधर आदि स्थानों में घटित घटनाक्रम ,लोगो में देश के प्रति जिम्मेदारी का न होना और असहनशीलता का बदना दर्शाता है। क्या ये सही है की "करे कोई और भरे कोई "। ये सच है की वियना में भारतीय संतों के साथ जो घटित हुआ वह ग़लत था तथा पूर्णतया निंदनीय है किंतु इसका मतलब यह नही की हम विरोध करने के लिए अपने ही देश में दंगा करें अथवा अपने ही देश की संपत्ति का नाश करें। क्या कभी सोचा है की इन घटनाओं से कितने लोगों को कठनाइयों का सामना करना पड़ता है। यही नही इन बिगड़ते हालातों के चलते अनजाने ही कितने मासूमों को अपने जान गंवानी पड़ती है। हम आतंकवादियों को कोसते हैं,लेकिन विरोध जताने के लिए या फिर अपनी मांग मनवाने के लिए जो तरीका हम अपनाते हैं क्या यह किसी आतंकवादी घटना से कम है ?
जिन रेलों और बसों असुविधा होने पर हम शिकायतें करते नजर आते हैं ,उसी संपत्ति का नाश करने पर क्या हम अपने ही सुविधा के साधनों में कमी नही कर रहे हैं ? गलत बात का विरोध करना जरूरी है पर साथ ही विरोध करने का तरीका भी उचित होना चाहिए । देश के समस्त नागरिकों को एक बार इन पहलुओं पर जरूर सोचना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर विराम लगे।