रविवार, 17 मार्च 2019

हम हीरे लुटाकर , कोयले बचा रहे हैं।

जो कर्मठ हैं नित, योगी हैं
न आत्ममुग्ध, न भोगी हैं
उनको ही भुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।


जिनका अंदाज फ़कीरी है
जेब में बस कुछ कौड़ी हैं
उनपे उँगली उठा रहे हैं
हम हीरे लुटाकर कोयले बचा रहे हैं।


जो उन्मुक्त गगन के पंछी हैं
छल-कपट, झूठ के प्रतिद्वंदी हैं
उन्हें शत्रु बता रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं

वोटों का सही प्रहार करो
है वक्त अभी, विचार करो
किसे चुनकर बुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।


जागो जनता जागो
ज़रा ठहरो, सोचो, फिर आगे बढ़ो

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

कब तक रहें मौन

हाँ - हाँ राजा, मैंने सब सुना राजा
किन्तु है मेरा मत तुमसे भिन्न
प्रजा कब है ,राजा से अभिन्न
यह समय नहीं है विवाद का
अब प्रश्न नहीं उन्माद का
जब शत्रु करे छिपकर प्रहार
न करे कोई सन्धि स्वीकार
कहो कब तक हों नतमस्तक राजा
सुनो राजा! सुनो राजा!

शांति प्रस्ताव भेजे जितने
शत्रु ने वार किए उतने
खून बहाया जिन  वीरों का
मैं हूँ कर्जदार उन शहीदों का
एक हाथ कभी ताली न बजती
अति चुप्पी भी कायरता होती
कहो कब तक न करें प्रहार राजा
सुनो राजा! सुनो राजा!

दीपाली पन्त तिवारी 'दिशा'

मैं कहाँ हूँ?


माँ, बहन, बेटी, बहू और पत्नी
कितने ही अनगिनत नाम हैं मेरे
फिर भी सोचती हूँ कि इन सब के बीच
मैं कहाँ हूँ?

खुद को ढूँढना और होने का अहसास दिलाना
क्यों है इतना कठिन , ये जता पाना
अरे कोई तो समझे ,मैं इनसे परे जाना चाहती हूँ
आज मैं, बस 'मैं' रहना चाहती हूँ।

दीपाली पन्त तिवारी 'दिशा'