शनिवार, 20 जुलाई 2013

ख़्वाब

पलखों के बंद झरोखों से
बहुत से ख़्वाब देखे थे मैंने
आकाश पर टिमटिमाते अनगिनत
तारों की तरह सुनहरे, सुंदर,
रुपहले, झिलमिलाते ख़्वाब
इस डर से कभी न उठाई पलखें
कहीं माँग न ले कोई इनका हिसाब
घुटने की आदत हो गई है इन ख़्वाबों को
अब ये नहीं पुकारते
लेकिन ये भी सच है कि अपनी खामोशियों में ही
कहीं है अक्सर चित्कारते
कब तक करूँ अनसुनी इस पुकार को
कैसे खोलूँ इन बंद पिंजरों के द्‍वार को
है प्रश्‍न कि यह अन्तर्द्वंद कब तलक चलता रहेगा?
और कब इन ख़्वाबों को हकीकत का रंग मिलेगा ?

बदलाव की बयार भली लग रही है

बदलाव की बयार भली लग रही है
जो न थे तैयार उन्हें खल रही है

अक्सर भूल जाते हैं पायदानों पर चढ़ने वाले
तरक्की की पहली सीढ़ी नीचे से ही चढ़ी है

बोए थे जो बीज कभी एक उम्र पहले
उसकी फसल आज पक कर  खड़ी है

हो रहे हैं पस्त अब हौंसले दुश्मनों के
उम्मीद की किरण ए दिशा दिख रही है

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

इंतजार का फल मीठा होता है

देर ही से सही हर एक ख्वाब सच होता है
सच ही तो है कर्मों का हिसाब यहीं होता है

यूँ तो ग़मों के दौर में कई बार एतबार टूटा मेरा
ये अब जाना इंतजार का फल भी मीठा होता है

कोई कितना ही समझे कि वो खुदा हो गया है
ए दिशा सबके चेहरे का नकाब यहीं हटता है