शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

उस पार से आती एक आवाज़

उस पार से आती एक आवाज़
रोज झकझोरती है मुझे
न जाने कितनी ताकत है उसमें
अंदर तक तोड़ती है मुझे
कोशिशें लाख करती हूँ मगर
यह पहेली नहीं सुलझती है
प्रश्‍नों की भरी महफिल में
मौन कर देती है यह मुझे
अचानक से अब यह आवाज़
जानी पहचानी लगने लगी है
ये तो मृग की नाभी में छुपी
कस्तूरी की तरह ही है
हाँ यह हमारी आत्मा की आवाज़ है
जो हमारे समीप होकर भी
कहीं दूर से ही सुनाई देती है
छिपी है हमारे हृदय में लेकिन
उस पार से आई लगती है
क्योंकि इस पर बहुत धुंध है
और अज्ञानता के गहन अंधेरे है
झूठ, छल और कपट के काले नाग
इसको चारों ओर से घेरे हैं
इन विषधरों का नाश करना होगा
तभी हमारा स्वयं से परिचय होगा
तब उस पार से आती यह आवाज़
परायी नहीं लगेगी
हमारे मन की निर्मलता उसे
हमें झकझोरने नहीं देगी