नाज़ुक उँगलियों में देकर कलम की ताकत
बढ़ा देते है वो हौंसले हमारे
शरीर के रोम-रोम में ज्ञान फूँक कर
मिटा देते हैं वो अंधकार सारे
निराशा में हैं वो उम्मीद का दिया
माटी को दें नित रूप नया
मस्तिष्क की खाली तख्ती पर उन्होंने
न जाने कितने ही अक्षर उभारे
जीवन की हर नई डगर पर
राह हरदम है हमें दिखाई
सुनकर कितनी ही अनकही बातें
हम सभी के दुख बिसारे
ऐसे हैं शिक्षक हमारे
जान से भी हमको प्यारे